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इंसानियत का नशा,,,,,,,,,,,

Reality and Mirage of Life
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________duckkitty

रास्ते में फेंकी बीड़ी पाई ; पहली बार ओंठों से लगाई ।

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शुरू हुआ झूठी बीड़ी से ; चढने लगा नशा सीढ़ी से ।

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हुआ प्रामोसन पाई “क्रैक”; करता  रहा उसी से ऐश ।

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एक रोज तो गज़ब हो गया ; चिलम से मेरा मिलन हो गया ।

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ब्रेन का मेरे “लॉक” खुल गया ; जन्नत सा माहोल हो गया ।

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मारता रहा मैं कश पे कश ; आँखे टंग गई, खा गया गश ।
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अंदाज़ हो गया नशा नशीला ; बदन हो गया सारा ढीला ।

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अब हूँ बेबस , जेब है खाली  ; नशा मिले तो  खेलूं पाली ।
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जीवन का सब मजा  खो  गया ; नशा ही अपना खास हो गया ।

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को में यूँ  न खोता ।

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नशा सत्य की खोज का होता ; गाँधी सा व्यक्तित्व निखरता ।

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“वल्व ” दमकता ।

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छोड़ो  बीड़ी, चिलम, चटारी ;  सेहत पर ये पड़ेगा भारी ।

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; इन्सान बनो , इंसानियत नशा करो तुम ।

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