Reality and Mirage of Life
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अपने कंधे पर सिर रखकर कोई रोता नहीं है
सीने पर सिर अपना रखकर कोई सोता नहीं है
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इन्सान इतना तंगदिल हो गया क्यूँ है
हंसने मुस्कराने पर लगा कर्फ्यू सा क्यूँ है
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आदमी आदमी खुलकर मिलता नहीं है
बात बिना बात यूँ ही कोई करता नहीं है
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जो खोल लेता दिल अगर लोगों के साथ
आज न खोलना पड़ता औजारों के साथ
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लोगों से न मिलने को व्यस्तता का बहना बहुत है
फेस बुक लगा रातों को जामवाड़ा बहुत है
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इन्सान का इन्सान पर भरोसा कहीं खो गया है
भगवान् की दुकानों का बाज़ार खड़ा हो गया है
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दुनिया को फोन लगाने में सख्स कितना मस्त है
अपने डायल करो तो सारी लाइने व्यस्त हैं
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कायदों का शहर है मिलना तो कुछ फासला रखना
हाथ भी न मिलायेंगे जो गले मिलोगे तपाक से
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