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इन पिंजरों को ,,,,,,,

Reality and Mirage of Life
Reality and Mirage of Life
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मंदिर को छोड़ आया पूजा किये बगैर
मस्जिद से चला आया इबादत किये बगैर
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पूँछ लिया सोने चाँदी अम्बार अन्दर लगे क्यों है
भूखे से बिलखते, हाड़ मांस के इन्सान बाहर खड़े क्यों हैं
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अन्दर मौलवी जन्नत के सपना दिखता क्यों है
मस्जिद बाहर ही हो गया आदमी का क़त्ल क्यों है
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तिलिस्म तुझ में है, पहना दे कपडे नंगे जिस्मों को
जादू नहीं, बस लगा दे थोडा मरहम इन जख्मों को
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इन पिंजरों को साँस के आने जाने के एहसास बहुत कम है
फिर भी तुझको इन साँसों के टूटने से होता बहुत गम है
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दे दे अभी, जो भी देना है इंसाफ के नाम पर
मुगालता ने देना , हिज्र में मिलेगा , के नाम पर
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मंदिर को छोड़ आया पूजा किये बगैर
मस्जिद से चला आया इबादत किये बगैर

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