Reality and Mirage of Life
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बाल दिवस का गाना गाता
मेरा भोलू चाय बनता
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किसी भी चौराहे पर
जूते सिलता वो मिल जाता
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कोई रेल या बस स्टैंड
करतब दिखलाता वो दिख जाता
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विदेशी सैलानी लेते फोटो
गरीब भारत का ब्रांड एम्बेसडर वो हो जाता
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हलवाई से लेकर, नाई की दुकान में
गारे से बनते मकान में
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घर में, मिलों में
वावार्ची के तन्दुरों में
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कूड़े के ढेरों में , कपड़ों के धोने में
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जरदोरी की कढ़ाई में
बर्तनों की गड़ाई में
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बचपन फंस के रह जाता है
अंगड़ाई लेने से पहले
बच्चा बूढ़ा होजाता है
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सोच रहा था ओर कहाँ
मिटते बचपन को ढूँढूँ
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भोलू तब चाय ले आता
बाल दिवस का गाना गाता
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