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कुछ तितर बितर जिंदगी के तार

Reality and Mirage of Life
Reality and Mirage of Life
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आज लौटा हूँ, तो बदला सब आलम क्यूँ है
किसी का चेहरा बर्फ , किसीका सुर्ख क्यूँ है
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किसी को मिलती तारीफें, यूँ ही बरक़रार है
कुछ रूठ के लौटें है , फिर भी इनकार है
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यूँ ही महकते रहें फूल उनकी महफ़िल में
हम भी छोड़ आयें कुछ यादें उनकी महफ़िल में
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आदाब महफ़िल खत्म होने का निभाना होगा
घर नहीं, तो भी, उठाना और चलके जाना होगा
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खानाबदोशों के मिट्टी गारे के घर तो नहीं होते
पैरों तले कांटे , सर पे बिजली , हौसले कम तो नहीं होते
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नफरत करने वाले को उम्र देना तफसील से
जलाता रहे ताउम्र वो मेरे हुनर औ इल्म से
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आँखों की किनोरों का हुनर दिखिए जनाब
छिपा लिए हैं इसने समन्दर, बेहिसाब
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जो नयी दुनिया खोजने का तलबगार था
उसे राहे मुश्किलों से न कोई सरोकार था
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हर आदमी ढूंढता अपने में अपना संकू क्यूँ है
दर्द औरों के मिटाने से मिलेगी जन्नत , असली बात यूँ है
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photo-11
हसरतों के चिरागों यूँ ही, सारी- सारी रात जलाये रखना
हम की भी आता है लौ से लिप
ट के सुलगना और सो जाना
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सभी लोग मेरे बारे कयास
लगाया करते है
हम बस यूँ ही इस गली में आया जाया करते हैं
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किसी को चाँद की चांदनी , किसीको काली रात
हरेक को सुहाती है, बस अपने ही
मतलब की बात
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आँखों की कोर तक पहुंचे आंसू भी पी लिए जाते है
जुबान न खुल जा
ये कहीं , ओंठ भी सीं लिए जाते हैं
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कुछ तितर बितर बेतरतीब जिंदगी के तार मरोड़ता हूँ मैं
गांठ गिरह लगा लगा ताना-बाना किसी तरह जोड़ता हूँ मैं

राजीव जैन “राज़”

the painting is with courtesy Dheerendra Rohit

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