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आज डर है की व्याख्याओं के झमेले में पड़कर कहीं मूल मुद्दा ही न फिसल जाए | भ्रष्टाचार के दानव के सामने यह ७४ वर्ष काया में सिमटा इन्सान वाकई आज होश संभाल चुकी प्रोढ़ जनता के नौनिहाल बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने कें लिए खुद की जान दांव पर लगा रहा है | भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई भी इन्ताह यदि किसी मनुष्य में कहीं भी पाई गयी हो तो वह अन्ना के इस प्रण से छोटी पड़ेगी | सरकार जो खुद देश को किसी भी प्राथमिकता नहीं रखती, मुद्दे से बचने के लिए तर्क कुतर्क कर रही है | चीज़ें आज की घडी में , कहीं बड़े निर्णायक मोड़ पर है और एक समय आता है जब कलम के सिपाही भी सड़क पर दिखना चाहिए | गाँधी या गाँधी जैसा या कितना प्रतिशत गाँधी होना आज नहीं कल पर , निर्णय के लिए छोड़ा जाना चाहिए | जब भारत की जनता स्वतः ही रामलीला मैदान ही नहीं, शहर- शहर, गाँव -गाँव ,जुड़ रही तब सरकार पुरे सप्ताह कोई दायित्व निभाती नज़र नहीं आ रही | वह ऐसा दिखा रही है जैसे गली मोहल्ले में किसी सड़क बनाने के लिए कुछ लोग धरना दे रहे हों | सात सात दिन इतनी बड़ी तादात में लोगों का हुजूम मैदानों व् गलिओं में घूमता रहे और कोई अप्रिय जोर जबरदस्ती न सुनायी दे, यह आज के दौर में भी अहिसंक चिंतन के भारतीय मूल्यों को साबित करती है| क्या चालीस साल तक ठन्डे बस्ते में लोकपाल बिल डाले रखने वाली सरकार को इन सब दिनों, दिन रात अपने सचिवालय खुलवाकर इस लोकपाल को,जनता को स्वीकार्य रूप, में नही पास करना चाहिए | यह दीगर बात है कि हमारे सांसद जब जब अपनी सुविधाएँ व भत्ते व वेतन बढवाना हो, तो बिना किसी को कानो कान खबर हुए, बिना समय गवाएँ यह कर लेती है | जनता का जो काम एक प्रार्थना पत्र पर हो जाना चाहिए, उसे कराने केलिए सड़क आना पड़ता है | हम जिन्हें चुनकर भेजते है वे हमारे ही हुक्मरान बन जाते हैं | हम जो धन बल अपनी कुशलता या कारीगरी या श्रम से देश के लिए पैदा करते उन पर ये लोग काबिज़ होकर हमें ही जरा जरा सी जरूरतों के लिए अपनी चिरोरी करवाते हैं | वोट में आज खोट है | यह पैसे से बिकाऊ , धर्म मजहब में फंसा व डर और भय से प्रभावित है | ऐसे छद्म वोट के दम पर लोकतंत्र का यह स्वरुप बड़ा भयावह हो चला है | हालाँकि कल यह लग सकता है की कोई पक्ष जीत गया या कोई पक्ष हमारे अधिकार को हमने देकर शायद बहुत बड़ा एहसान ही क्यूँ न कर दे | पर एक स्वतंत्र देश में जहाँ कोई व्यवस्था है वहां व्यक्तिगत अधिकारों की अवहेलना आज भी होगी | बात मनवाने के लिए भीड़ यूँ ही जुटानी पड़ी, एक वयो वृद्ध को संवेदना जुटाने केलिए अपनी जान को लगाना पढ़ जाये तो शर्म सरकार को ही नहीं सोई हुई जनता को भी आनी चाहिए | छोटी छोटी सुविधा पाने के लिए बिना कुछ प्रतिरोध करे रिश्वत की राशी खुद जेब में रखने वाले अपने गिरेबान जरुर आज झांके | सडको पर डाबर की जगह रेता डालने वाले; जो बच्चों के लिए डाक्टरी में भर्ती के लिए इस तरह पैसा जमा कर रहे हैं ऐसे यंत्री, आज जग जाएँ | मिनुसिपिलिटी की नाली के ऊपर अपने माकन दुकान चड़ाए लोग भी आज अगर राम लीला मैदान पर है तो कुछ सकुचा जाएँ | बिजली बिल को कम करने के लिए, मीटर को कम करवाने वाले लोग चेत जाये | आज आप वायदा करे , बिजली कर्मचारी को पैसा नहीं देंगे | कुछ असुविधा सह लेंगे , कभी बिना रिजर्वेशन यात्रा कर लेंगे पर टी टी को चलती ट्रेन में पैसे उतने देंगे जितने की रसीद है | सभी वर्ग चैतन्य होंगे तो सुधार जरुर आयेगा | आज बहस अन्ना गाँधी की नहीं मेरी अपनी है | यह लड़ाई भी मेरी अपनी है|
इसी भावना के साथ कि कहानी बड़ी लम्बी व लड़ाई तो रोज़ लड़नी है | शब्बा खैर | शुभ रात्रि | जय हिंद | जय भारत |
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