Menu
blogid : 441 postid : 387

क्या मेरे देश को बचाने कोई रहनुमा आएगा ?

Reality and Mirage of Life
Reality and Mirage of Life
  • 62 Posts
  • 540 Comments

किसी और विषय पर लिखते लिखते फिर विवश होना पड़ा कि उसे छोड़कर मन में उठी टीस आप सबसे बांटू | एक सवाल बार बार जहन को खोखला कर रहा है, आखिर कब तक निरीह जनता का खून यूँ ही सड़कों पर बहता रहेगा? | कैसा लगता है बार-बार सुनना जब टी ० वी० पर एंकर चिल्ला रहा होता है “आज सुबह मुंबई फिर उसी रफ़्तार से दौड़ रही है” , “यहाँ, डरती नहीं जिंदगी, फिर वही लोकल की न थमने वाली रफ़्तार , “हम सलाम करते है आम मुम्बईकर के हौसले की” | किसी और चैनल पर समझाने की कोशिश हो रही होती है साजिश रचने वाले पहले से मुंबई ठहरे थे मौके की तलाश में थे , उन्होंने किसी विशेष तारीख को जानबूझ कर चुना | केवल हमारे पास एक्सक्लूसिव फूटेज है जो हम सबसे पहले दिखा रहे है | कुछ बेशर्म से चेहरे अपील करते नज़र आते है जनता धैर्य बनाये रखे और प्रत्येक मरने वाले की जान की कीमत बता दी जाती है | पुराने रिकॉर्ड से देख लिया जाता है की पिछली बार से यह राशी कम न हो | बार बार होने वाले आतंकवादी हमलो ने , उसके बाद तोते की तरह रटे रटाये वक्तव्य देने की तय्यारी इतनी पुख्ता कर ली है की अब उसमें दिमाग लगाने की जरुरत भी , अब राष्ट्र के कर्ण धारों को नहीं करनी पड़ती | सब कुछ फिक्स हो गया है कि जब अगला आतंकवादी आकर बिना किसी सरोकार आम जनता को मारेगा तब फिर सारी औपचारिकताएँ की जाएँगी | पश्चिमी देशों को अपने लिए बाज़ार चाहिए उनके अपने हित है तो आपको भरमाया जायेगा की भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था है | इन सब लोगों का मंतव्य साफ़ है की अपना उल्लू सीधा करो पर आतकंवाद के नाम पर भारत पाकिस्तान को एक तराजू में तौल दो |
दिल्ली सत्ता सँभालने वालों गद्दी और सरकार बचाने की आफत में दिन रात इतनी ज्यादा सताती है , कि किसी भी समर्थन देने वाले दल के सदस्यों को २ जी स्कैम करने को खुला छोड़ दिया जाता है? तब आतंक वाद से देश को बचाने कौन आये ?| , किसी भी हथकंडे से वोट हासिल करके सत्ता मिल जाने की व्यवस्था ने, गंभीर किस्म के अपराधी समीकरणों का उदय भारतीय राजनीति में कर दिया है| ऐसे भ्रष्टाचारी भी कमसे कम उतने इमानदार भारतीयों को मौत तो दे ही देते है जितने लोगों आतंकवादी समय समय पर मरते हैं | एक अरब से ज्यादा होती जनसँख्या में प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा की गारंटी सरकार नहीं उठा सकती ऐसा वक्तव्य भी आया है | मेरे अनुसार यह तब और भी मुश्ल्किल जब सारी मशीनरी केवल नेताओं व बड़े लोगों को ही बचाने के लिए ही लगा दिए जाएँ | भूख और मौसम की मार खाते बिमारिओं की ईमारत बन चुके , प्रकृति के आसरे मरने छोड़ दिए अति पिछड़े लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि भूख से मरे या बिस्फोट से | उसके लिए यह गैर मानी है की वह स्वतंत्र भारत के नागरिक की तरह मरा या अंग्रेज हुक्मरान की गुलामी करते | समस्या चाहे उपर से जहाँ भी दिखाई दे उसकी व्यापकता में जाने पर समाज खुद ही उत्तरदायी नज़र आयेगी | हम भी प्रकृति से लालची और अपना हित साधने वाले हो गए हैं | हुम सुविधाभोगी हो चले हैं अपने राष्ट्र का नागरिक होने की न तो जिम्मेवारी निभाते हैं न राष्ट्रिय हितों को कोई तवज्जो हम देते हैं |
आज जरा से लालच में सिम को बेचने वाला दुकानदार किसी और के पहचान पत्र पर किसी को सिम दे देता है | अपने जरा से लालच से पता नहीं कब किसी आतंकवादी घटना में वह सहायक हो जाता है | भ्रष्टाचार और आतंकवाद में गज़ब का चोली दामन का सम्बन्ध है | किसी भी आतंकवाद को जारी रखने के लिए जबरदस्त मुद्रा राशि की जरुरत रहती है जिसे स्थानांतरित करने के लिए हवाला जैसे माध्यम उपयोग में लाये जाते हैं | यहाँ चाहे धन चाहे आतंकवादी संगठन का हो या महा भ्रष्टाचारी नेता का वह एक ही प्रकार के दलालों द्वारा इधर उधर किया जाता है | अवैध रूपं से चल रहे जुआ घर , शराब के अड्डे , मनुष्य खासतोर से महिलाओं व बच्चों की बेचा बाची | दूर से देखने पर चाहे ये आतंकवाद से अलग दिखाई दे पर सब एक दुसरे के पोषक हैं | क्या फ़ौज के लिए बुलेट प्रूफ जाकेट की खरीद में हुए भ्रष्टाचार के कारण आतंकवादिओं के हाथ हमारे करकरे सरीखे लोग अपनी जिंदगी हाथ नहीं धो बैठे | भ्रष्टाचार और मजहबी राजनिति दो ऐसे नासूर हैं जिनके रहते आतंकवाद हमेशा शेषनाग की तरह अपना फेन फैलाये खड़ा रहता है | जहाँ जहाँ भ्रष्टाचार अंकुश में हैं वहां राष्ट्रिय हित स्वयं मुखुर हो जाते है वहां के राजनेता अपने देश के हित साधने के लिए सारे संसाधनों इस्तेमाल करते है | आतंकवाद का भ्रष्टतम देशों पाकिस्तान , इराक , अफगानिस्तान , लीबिया के साथ भारत में पाया जाना इस बात को पुष्ट करता है | अमेरिका का आतंकवाद को मुहतोड़ जबाव उसके यहाँ भ्रीष्टाचार के कम होने से जोड़कर देखा जाना चाहिए | हम अपने यहाँ कानूनों को रोज़ छोटी छोटी रिश्वत देकर तोड़ते रहते हैं | मैंने कोरियर कम्पनी वालों को बिना लिखा पड़ी के दर्ज़नों बोरी नुमा पैकेट रेल प्लेटफ़ॉर्म आने पहले फेंकते व वहां पहले से खड़े ऑटो चालको को लपकते देखा है | यह होता है पुलिस और रेलवे पुलिस के रोज़ कुछ रुपयों की खातिर बिना बेरोक टोक जाँच और पड़ताल कुछ भी सामान कहीं ले जाने पर आँख मूंद लेने से | ऐसे में विस्फोटक कही भी ले जाना किसी के लिए बच्चों जैसा खेल है | एक मंत्री दिल्ली में फैशन शो को छोड़कर बहार नहीं आये -” कौन रोज़ रोज़ होने वाले इन तमाशों से अपना बना बनाया मूड बिगाड़े | आम जनता अपनी आम परेशानियो से कहीं जलेबी बाई मुन्नी बाई के ठुमको से अपने को तनाव मुक्त कर रहे है ख़ास लोग ख़ास भ्रष्टाचार करके स्वयं के लिए न ख़त्म होने वाली दौलत जमा कर रहे है | अपना मुल्क किसी के प्रयोजन में कहाँ है | किसी शहर मोहल्ले में आज उन गिने चुने इमानदार सख्शों को पूछने वाला नहीं हैं जिन्होंने किसी भ्रष्टाचार का अंग न बनाने पर भ्रष्ट चारिओं ने मौत दे दी | गाँव देहात में सचिन शाहरुख़ के क्लब है पर सत्येन्द्र मंजुनाथ के वयोवृद्ध अकेले अपने कलेजे पर जवान बच्चों के जाने का ग़म ताउम्र झेल रहे हैं | कौन बचाने आयेगा इस देश को जिसके बाशिंदे अपने को मजहब और जाति से पहचानते है और राष्ट्रीयता का स्थान दोयम है | सबके पास अपने हरे पीले झंडे है तिरंगा मज़बूरी में सरकारी भवनों पर केवल औपचारिकता निभा रहा है | यहाँ के धर्म संस्थानों मदरसों योगिओं मुनिओं और बेशर्म भ्रष्टा चारिओं के स्विस बैंकों में राष्ट्रीय सम्पति से ज्यादा सम्पति भरी पड़ी है | आज जब हम में से कोई देश को अपना कुछ देने को तैयार नहीं पर देश से सब कुछ अपेक्षा रखता है कि आश्रय दे, कि सुरक्षा दे, तो यह कहाँ तक यह संभव है | आतंकवाद कि पूरी समीकरण इतनी आसान नहीं कि कोई फ़ौज सीधे बगल के देश पर आक्रमण कर दे और सब कुछ मिटा दिया जाये | एक तो पूरी समाज को देश पर समपर्ण कि भावना का आना जरुरी है और दूसरा इसराइल की मासाद जैसी चुस्त दुरुस्त जासूसी कमांडो की जो बहार के देशों में आतंकवादी ठिकानो को वहीँ ध्वस्त करे | देशभक्ति जैसे शब्द किताबों में ध्वस्त हो कर कबाड़ों में पड़े हैं | शायद ही देशभक्ति का सन्देश कोई परिवार अपने बच्चों को देना चाहता है | सभी चाहते है की जिंदगी में सफलता पैसे व आरामदायक ऐशो आराम की इफरात हो | यहाँ लड़ाई दो स्तरों पर लड़ी जानी एक उनसे जो लोग बहार से आकर लाशें बिछते रहते है और दुसरे हमारे अपने लोग है जिन्हें हमारे मतदान के ड्रामा के साथ चुना जाता है और वे हमारे हुक्मरान बनके हमें लुटते खसोटते है | आर्थिक विषमता जिसे भ्रष्टाचारी तंत्र जन्म देता है आतंकवाद के किये कच्चा माल यानि कि मानव संसाधन देता है | कश्मीर व पंजाब का आतंकवाद इस बात का गवाह रहा है| हमारे लोकतंत्र की देन, आपराधिक राजनयिकों का जुल्म सितम जब बेगुनाहों पर टूटे \ उनकी मां बहनों कि इज्जत लुट ली गयी थानों में सुनवाई न हुई | उलटे शिकायत करने वालों को दबंगों घर से उठा लिया \ ऐसे परिवार के युवक प्रतिशोध के कारन समाज से बदला लेने निकल पड़े | ऐसे ही युवकों को तलाशते आतंकी आकाओं ने उन्हें थमा दी ऐ के ४७ | भारत आज एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जब नौजवान गीत, संगीत ,अपनी प्रगति कि कामना छोड़कर एक वर्ष इस देश को देदे तो, समग्र परिवर्तन लाकर, इस देश को बचा लिया जाये |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh