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मैं मंदिर के बाहर,वो मंदिर के अन्दर

Reality and Mirage of Life
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मंदिर पर बैठा भिखारी
आज फिर मुस्कराता है
बड़ी सी गाड़ी में बैठकर ,
आया आदमी पैसा फ़ेंक कर
अन्दर चला जाता है



भिखारी का बेटा
पूंछता है की रोज़ यूँ ही हँसतें
क्यूँ हो
उस आदमी की हमदर्दी का मजाक
बनाते क्यूँ हो



भिखारी आज बात टाल न
पाया
उसने बेटे को समझाया
बड़ी गाड़ी वाला भी बड़ा गरीब है
वह भी बहुत मांगता और गिड़ गिडाता है
मैं मंदिर के बाहर
वो मंदिर अन्दर मेरा ही किरदार निभाता है

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