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एक गाँव के बाहर, एक दिन, कोई आदमी ,दिसंबर-जनवरी की ठण्ड में, केवल कुछ कपड़ो में, बिना विचलित हुए सड़क के किनारे बैठा था | लोगो के कुछ पूंछने पर वह कुछ भी बोलता नहीं था | एकाध दिन, एक ही जगह बिना खाए पिए उसके वहां बना रहने पर, तरह तरह की चर्चाएँ गाँव में फैलने लगी | लोग कहते “कोई पहुंची हुई आत्मा, ईश्वर की कृपा से पधारी है जो बिना कुछ खाए पिए जिन्दा है”| कुछ कहते “महात्मा जी सीधे हिमालय से आये है, यहाँ की ठण्ड इनका क्या बिगाड़ लेगी” | “बाबा में अनंत ज्ञान है ” “इनके सन्देश समझो ये बिना बोले आगे होने वाली घटनाएँ बता देते हैं” | यदि वह सयोंग वश सीधा पैर बाहर निकाल देते, तो लोग कोई एक अर्थ निकाल लेते व दूसरा पैर निकाल देते तो अन्य परिणाम बताए जाने लगते | वह व्यक्ति किसी के सामने कुछ नहीं खाता था पर अनायास ही लोगों द्वारा रखा वो खाना भी खा लेता, जो किसी बिल्ली या कुत्ते ने झूठा कर लिया हो |
धीरे धीरे तरह -तरह की बातें आस-पास के गांवो में फैलने लगी और मजमा लगने लगा | जिन गांवों में पिछले तीन सालों से लगातार फसल, सूखे के कारण भूसा में तब्दील हो रही थी, वहां यह खबर जंगल आग की तरह फैल गयी | दाने-दाने को परेशान लोग अपनी भूख को भूलकर किसी चमत्कार के लिए बाबा के चारो और डेरा डालने लगे | कुछ और समय बाद, बहुत से स्वम्भू समाजसेवी नेता और पंडा के सयुंक्त रूप वाले प्राणी (व्यक्ति) व्यवस्था बनाने के नाम पर चंदा बसूलने लगे | लोगों में यह बात प्रचलित कर दी गयी कि महाराज सामान्य व्यक्तिओं के पसीने इत्यादि से पैदा होने वाली गन्दगी से दूर हैं | वे शौच के बाद न तो हाथ को, पानी या फिर मिटटी से धोते, न ही, गुदा ही साफ़ करते | लोग उन्हें किसी प्रकार से गन्दा न मानकर कहते कि “चमत्कार है, उनमे कोई बदबू ही नहीं आती” | दूर- दूर से कई प्रकार के रोगी आते और तथाकथित पंडा रूपधारी लोग, भोले गाँव वालो को, अब तक सिद्धात्मा बन चुके बाबा की किसी भी मुद्रा का, कुछ भी अर्थ बताकर, कोई भी अनुष्ठान कराने या कोई चबूतरा बनाने के नाम पर चंदा उगा लेते |
सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था कि एक रात की बात है, इतने दिन से एक जगह, बिना हिले डुले बैठे, उस पूज्यनीय व्यक्ति को न जाने क्या सूझी कि वह अचानक कहीं चला गया | उसको गहरी रात में जाते किसी ने भी न देखा | जो लोग अभी तक सारे तमाशे को संचालित कर रहे थे के हाथों से तोते उड़ गए, अब क्या होगा | अगर यह तमाशा बंद हुआ तो चढावा ,चंदा ,दान दक्षिणा सब बंद हो जाएगी | उन्होंने लोगों को गुमराह करने व स्थति सँभालने के लिए सबसे कह दिया कि वे अपने गुरूजी से मिलने चले गए है और सब मिलकर भंडारा व कीर्तन करते रहें, जिससे पवित्र आत्मा जल्दी लौटे | उस एक काया के न रहते भी, धर्म के नाम पर चंदा लगातार आता रहा | चुनाव की मुनादी हो चुकी थी मंत्री जी को खबर लगी तो मौका अनुकूल लगा और मलिछ बाबा के नाम से, बिना ये जाने कि जंगल की जमीन है, उस जगह मंदिर बनाने का पत्थर ठुकवा दिया | दो तीन साल से सूखे से पीड़ित गाँव में अत्म्हात्यों का सिलसिला चल रहा था तथा मंत्रीजी नदारद थे | आज यह पुण्य का काम करने आये तो, मरने की कगार पर धकेल दी गयी जनता भी, उनकी जय जयकार करने लगी | मंदिर की शिला मंत्रीजी के रख दी |
लोगों को इन कामों में लगाकर असली गोरख धंधा सँभालने वाले लोग बाबा को तलाशने जंगल का रुख कर गए | वे रास्ते में सोचते जा रहे थे -बाबा अगर किसी जानवर का निवाला बन गया तो जमा जमाया मजमा उठ जायेगा और साथ ही पैसे की बरसात भी रुक जाएगी | इतना ही सोचकर उनका कलेजा मुहं को आ जाता | तभी बाबा को खोजने आये दो में से एक ने देखा गाँव का कुत्ता पीछे पीछे आ रहा है | उसके मुंह से निकला -अरे कालू (गाँव के कुत्ते का नाम) कहाँ से साथ आगया| ढूंढने आये लोगों में से दूसरे ने भी अचानक कुत्ते को साथ देखकर उसे दुत्कारा ” साला सारे राज खोल देगा” | पहले ने समझाया हो सकता है बाबा का ठिकाना इसे पता हो, चलने दो साथ ,जानवर है किसीको क्या बताएगा | वे लोग आगे बढ़ जाते हैं , कुत्ता कुछ पीछे रह जाता है | पलट कर देखते है तो कालू किसी पेड़ पर एक टांग उठाये जगह गीली कर रहा था | अचानक दोनों खगबुधि इंसानों की नज़र पीछे गयी तो जैसे खोया हुआ खज़ाना मिल गया | बाबा वहीँ बेहोश हालत में पड़ा मिल गया | उन्होंने विचार किया बाबा को इस हालत मैं अगर गाँव ले जायेंगे तो हाहाकार मच जायेगा अच्छी खासी जमा जमाया तमाशा उठ जस्येगा | एक बोला “मरने दे यहीं साले को ” | कह देंगे हिमालय पर चले गये हैं | दूसरे ने प्रतिवाद किया बोला, “बिना बाबा के कितने दिन कीर्तन चलेगा” | “गाँव वाले जल्दी भाग खड़े होंगे” |
“चुनाव का समय है ऐसी नोटंकी के वक़्त बाबा को भी यहीं आकर बेहोश होना था ” उनमे से एक बोला | दूसरा आदमी कुछ सोचकर बोला -चलो उठाकर जिला अस्पताल में ले चलते है , कौन पहचानेगा बाबा को शहर में, कुछ इलाज होते ही यह पहले जैसा हो जायेगा तो रातों रात फिर बैठा देंगे उसी जगह | “अरे, इस बार पूरी देख रेख रखेंगे, एक कमरा तो वहां पहुँचते ही उठवा देंगे ” एक बोला | नेताजी जीत गये तो पता नहीं याद रहे न रहे अभी ही उनसे इतना तो निकलवा ही लो कि कमरा बन जाये | उनका कौन सा खुद का लगना है किसी ठेकेदार को मुर्गा बनायेंगे वही यह अंडा देगा | दोनों एक दूसरे से पंचतंत्र से लेकर राजतन्त्र की व्याख्या करने लग रहे थे | कुत्ता इधर उधर सूंघता पता नहीं किस मोहनजोदड़ो की सभ्यता का पता लगा रहा था | एक बोला “उठाओ अपने बाप को” | दूसरे ने प्रतिवाद किया “होगा तेरा बाप ” दोनों एक दूसरे को देखकर हंसने लगे, मानो कह रहे हों ” मतलब के लिए किसी को भी बाप बनाने में हर्ज़ भी क्या है ” | दोनों ने मिलकर जैसे तैसे बाबा को टाँगा | “कुछ भी नहीं खाता था फिर भी इस मरी ख़ाल में वजन अच्छा खासा है” एक बोला | “आज सारा खाया पिया निकाल देगा” दूसरे ने जबाब दिया | वे चलते जाते और वार्तालाप भी आगे बढ़ता जाता | “पता नहीं अब जंगल से सड़क कितनी दूर है शाम होते फिर शहर को साधन न मिला तो क्या करेंगे” ” ये मर गया तो पता नहीं क्या दिन देखने पड़े, अपने को” | होते होते सड़क आ गयी |
ये दोनों बदहवास, बाबा को टांगे सड़क किनारे खड़े हो गये | आगे खुले पेट वाली बस, घरघराती आवाज में पास आई और एक साथ तीन सवारी देखकर कंडक्टर जोश में आ गया | पहले से भरी बस में उसने चिल्ला चिल्ला कर, कुछ खड़े लोगों को आड़ा तिरछा कर, वो हुनर दिखाया कि; अपने दम पर खड़े ये दो लोग और उनपर पर घंटे की तरह झूलते बाबा,सब , बस में प्रवेश कर गये | कुत्ता इस गहमा गहमी में पीछे रह गया | अपने दार्शनिक अंदाज़ में भों भों करता, बस के जाने के बाद निर्विकार रूप से कहीं टहल गया | बस का कंडक्टर, रेलम पेल भरे यात्रिओं के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए, इन तीन नए यात्रिओं से मुखातिब हुआ | “चलो पचास निकालो ” खिड़की से पीक थूककर गला साफ करके कंडक्टर बोला और घूर के तीनो को देखने लगा | “अभी इधर से ही तो चढ़े है बैठ्वे को भी नहीं मिलो पचास मांगत हो बाबा लटकाए थक चुके अलग से ” एक ने प्रतिवाद किया | कंडक्टर स्थिति के लिए पहले से तैयार था गरज कर बोला” एक रूपया कम नहीं लगेगा , नहीं जाना होय तो बस रुकाये देत हैं , उतर जाओ” | दोनों ने चतुराई दिखाने की बजाय पचास का नोट देकर जैसे मुक्ति पाई | कंडक्टर का अचानक रुख बदला , दयालुता दिखाकर बोला “इ सवारी अभी उतर जाहे तो बब्बा को टिका देहो ” | बाबा का शायद तबतक पेशाव निस्तारण हो गया बदबू से सबसे पास की सीट पर बैठा व्यक्ति व्यथित होकर उठते हुए बोला” “तुरत ही बैठा देयो, हमें आगे उतरने ही है, सो खड़े ही ठीक ”
जैसे तैसे बाबा जिला अस्पताल पहुँच गये और इमरजेंसी में एक पलंग पर लिटा दिए गये | नर्स ने आकर दवा का लम्बा सा परचा थमा दिया और बोली ” बाहर से दवाएं और बोतल जो लिखा है सब ले आओ “| लम्बी लिस्ट देखकर उनमे से एक बोला ” हमें लाना पड़ेगा “| नर्स तुनक बोली ” मरीज तुम्हारा है तो तुम्हीं को लाना पड़ेगा “| मरता क्या न करता , दोनों ने पैसे मिलाकर दवा लाकर दी, उपचार शुरू हो गया | “सिस्टर बाबा कब तक ठीक हो जायेंगे ” , पहले से काफी परेशान हो गये दोनों, अपने को आश्वस्त करना चाहते थे कि कहीं पैसा और मेहनत बेकार न चली जाये |” डाक्टर आयें तो पूछ लेना” यह कहकर ग्लुकोस की बोतल नर्स ने तीमारदारों के हाथ थमा थी और बता दिया कि अगर बांह में सूजन आये या ग्लुकोस चड़ना बंद हो जाये तो उसे बता दिया जाये | अस्पताल में बोतल टांगने के स्टैंड कि कमी के चलते और मरीजों के रिश्तेदार पहले से ही बोतल लेकर खड़े थे |
कुछ शोर सा वार्ड में हुआ, वार्ड बॉय चिल्लाया मरीज के साथ एक रिश्तेदार छोड़कर सब बाहर हो जाएँ डाक्टर साहब आ गये है | नर्स ज्यादा भीड़ वाले पलंग पर कुछ लोगो को बाहर जाने का आदेश देती हुई डाक्टर साहब के साथ आ गयी | “नया मरीज कोई है” डाक्टर ने पूछा | नर्स क्लिप पैड में कागज पलटते हुए बाबा के पलंग की तरफ इशारा किया | डाक्टर ने बाबा की छाती आले (स्टेथोस्कोप ) से जांचा ब्लड प्रेसर नापा आँख कि जाँच की | लगता है कुछ समय से ठीक से न खाने पीने से शरीर में पानी कम हो गया है, जल्दी होश आ जायेगा बाकी नब्ज फेंफडे सही है | इसके बाद डाक्टर मुखातिब हुए, बाबा के संग आने वाले दीन हीन से लग रहे दोनों लोगो से, और पूछा कि तबियत कबसे ख़राब थी | पूरा ब्यौरा सुनते ही डाक्टर कुछ पशोपेश में पड़ गया, बोला बेहोशी तो ठीक हो जाएगी पर जैसा विवरण पहले का है, उसके लिए दिमाग के डाक्टर को दिखाना होगा, शायद बड़े अस्पताल रेफर करना पड़े | “हमें पूरा सही नहीं कराना है , तपाक से दोनों में से एक बोला | डाक्टर ने लगभग चिल्लाते हुए कहा”क्या मरीज को आधा सही कराना है” | दूसरे ने बात सँभालते हुए कहा हम लोगो पर बाहर ले जाने लायक पैसा नहीं है हम दिमाग का इलाज नहीं करा पाएंगे | देखो मैं कुछ करता हूँ, डाक्टर बोला |
सरकारी डाक्टर समझ गया कि सरकार तो मदद को आएगी नहीं और रिश्तेदार आत्मसमर्पण कर ही चुके है | अब डाक्टर ने सोचा रेफर करा तो यह इलाज अधूरा छोड़कर घर भाग जायेगा | ध्यान आया, उसके बैच का एक दोस्त मानसिक रोग में विशेषज्ञ है, जो शहर में ही प्राइवेट प्रक्टिस में है , क्यों न उससे बात करके यहीं इलाज कर दिया जाये | उसने फोन किया जोकि मेरे लिए था , “क्यों इतने समय बाद याद आई ? ” मैंने फोन पर सीधा सवाल किया | “अरे दिमाग के डाक्टरों से बात करने में डर लगता है ” दूसरी और से चिर परचित अंदाज में आवाज़ आई | विवरण से बहुत साफ था कि वह बाबा की उपाधि प्राप्त कर चूका व्यक्ति मानसिक रोग से पीड़ित था और विसंगत व्यव्हार वाली उसकी बीमारी मेडिकल विज्ञानं में स्किजोफ्रेनिया नाम से जानी जाती है | इसके बाद मेरी व जिला चिकत्सालय में पदस्थ डाक्टर बनाम मित्र जो , बाबा का इलाज कर रहे थे ,से फोन पर बातें होती रही , व बाबा की दवाओं का निर्धारण होने लगा | चंद दिनों में बाबा न केवल बेहोशी से बाहर आ गया बल्कि बातचीत करने, खाने पीने और नहाने इत्यादि की सारी क्रियाएं करने लगा | उसे लाने वाले दोनों लोगों को शायद लगा ऐसा सामान्य सा दिखने वाला आदमी अब किसी काम का नहीं है , वे बाबा को छोड़कर गायब हो गये | कुछ दिनों में बाबा जो अब सामान्य सा आदमी राम सेवक बन चुका था अपना घर व गाँव का पता जानता था| उसको किसी अन्य मरीज के साथ आये परिजन की मदद से, उसके गाँव भेज दिया गया | राम सेवक को लेकर उसके परिजन आज भी दवा लेने आते है और बताते वह सीधा साधा खेती बाढ़ी करने वाला इन्सान था | लगभग दो माह पहले वह कुछ दिन खोया खोया रहने के बाद एक दिन वह बिना बताये कहीं चला गया था |
मेरे सामने बात बहुत साफ थी कि स्किज़ोफ्रानिया से ग्रसित व्यक्ति अपने सोचने ,समझने महसूस करने और किसी हद तक यादाश्त कम होने से, अजीब सा व्यवहार करने लगता है और सुध-बुध खो जाता है | भयंकर सर्दी गर्मी से अपने को बचाने की बजाय घंटो एक मुद्रा में बैठा रह सकता है | उसके शरीर में कोई चमत्कारिक शक्ति इत्यादि नहीं आती और भूखा प्यासा बने रहने पर वह बाबा कि तरह बेहोश हो जाता है | मुझे ऐसे कई मामले क्लिनिक में मिलते रहते थे| दिमाग में अन्य प्रकार के परिवर्तन जिसमे कुछ महिलाएं अत्यधिक आक्रोशित व उत्तेजित हो जाती हों, तो भी उन्हें, उपरी शक्ति प्राप्त होने कि बात, प्रचारित करके हंगामा खड़ा हो जाता है | देवी आने का रूप दे दिया जाता है व आने वाला चढावा कथित लोगों के द्वारा हड़प लिया जाता है |
आज का अख़बार सामने था और मुख्य प्रष्ठ को पलटते ही फिर एक मौनी बाबा का प्रकट होने कि खबर थी | वे न बोलते न कोई भाव प्रकट करते , एक जगह घंटो पलक बिना झपकाए बैठे रहते | लिखा था उनके पास आने से कई लोगों के दुःख कम हो रहे है आस पास लोगो का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है | एक दिन में ही हजारों रुपये चढ़ाये जा रहे है | में सोच रहा हूँ कि यह बाबा भी रामसेवक कि तरह किसी मानसिक बीमारी कि गिरफ्त में तो नहीं जिसका तमाशा बनाया जा रहा है |
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