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चाय वाले बाबा

Reality and Mirage of Life
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बात आपातकाल विभाग में इन्टर्न शिप पोस्टिंग की है | पहले ही दिन बाल्य विभाग में मेरी पोस्टिंग थी | एम बी बी एस के ख़त्म होते ही पोस्टिंग का अलग उत्साह रहता है मैं अपने सीनिअर के साथ ड्यूटी पर था | सीनिअर के साथ रहने से कोई जिम्मेवारी न थी व जो भी काम सीनिअर द्वरा बताये जाते मैं कर रहा था | तभी सीनिअर छात्र को वार्ड में भर्ती मरीज देखने जाना पड़ा | रात के १२ बजे थे , तभी गाँव के कुछ लोग अपने पांच वर्षीय लड़के को गोद में लेकर अन्दर आये | शरीर भट्टी की तरह ताप रहा था और ऐसे में, शरीर को बर्फ में रखने से बच्चे को बचाया जा सकता था | रात के अधिक होने कारण मुझे लगा की बर्फ तो शायद ही कहीं मिले | फिर भी मैने उन्हें बर्फ खोजने को कहा और फ्रिज में बची कुची बर्फ से शरीर ठंडा रखने की कोशिश की | मुझे आश्चर्य हुआ, जब बर्फ लेकर रिश्तेदार, ये गये और वो आ गये | सुबह होते होते बच्चे का बुखार ठीक हो गया था | ड्यूटी समाप्त होने पर मैं और मेरे सीनिअर चाय पीने एक गुमटी पर रुके | मैंने उन्हें बच्चे के बारे में बताया और यह भी कि देर रात यदि बर्फ न मिली होती तो परिणाम गंभीर होते | उन्होंने (सीनिअर ने ) पूछा कि कितने बजे की बात होगी | मैंने बताया लगभग रात बारह -एक बजे की | तब उन्होंने मुझे जो बताया उसे मैं कभी नहीं भूल पाया | दरअसल कुछ वर्ष पहले आपातकाल विभाग के पास पान व चाय की दुकान वाले का एक लड़का बर्फ के आभाव में बचाया नहीं जा सका था | तभी से वह चाय वाला अपने पास रात होते ही बर्फ का स्टॉक रख लेता और जब भी देर रात कोई मरीज बर्फ कि जरुरत में होता तो , वह उसे मुफ्त बर्फ दे देता | यह धर्म  पता नहीं वह कितने सालों और निभाता रहा और जाने कितने लोगों की जान बचाता रहा | पर आज भी जब सोचता हूँ तो मानवता के उस जज्बे को सलाम करने का मन करता है |

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