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और मैं चला जाता हूँ उस , पहाड़ी पर बने मंदिर पर

Reality and Mirage of Life
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काम की हर सुबह शाम
नहीं यहाँ इक पल आराम
फिर भी अकेलापन कभी घेर लेता है
मन नितांत निर्जन तलाश लेता है
और मैं चला जाता हूँ
उस पहाड़ी पर बने मंदिर पर
ठीक उसी जगह
ठीक उसी वक्त
जहाँ कभी हम मिलते थे
ठीक उसी जगह
ठीक उसी वक्त





आज नहीं बचा कोई काम है
जीवन की आ चुकी साँझ है
कभी चश्मा , कोई किताब भूल आता हूँ
बैठा बैठा मायूस बहुत हो जाता हूँ
और मैं चला जाता हूँ
उस पहाड़ी पर बने मंदिर पर
ठीक उसी समय
ठीक उसी वक्त
जहाँ हम कभी मिलते थे
ठीक उसी जगह
ठीक उसी वक्त

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