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नॉएडा की पॉश कोलोनी में अपने आप को कई महीनो से कैद में रखने वाली दो बहनों का समाचार सभी टी वी चैनलों व प्रिंट मीडिया से आप तक पहुंचा होगा | इनमे से बड़ी जिसकी स्थति ज्यादा ख़राब थी , की म्रत्यु भी हो चुकी है | इससे पहले मुंबई में एक पिता ने अपने पूरे परिवार को सुरक्षित करने के उद्देश्य से घर के सभी सदस्यों को कई कई महीने चार दीवारी में कैद रखा था | उस वृद्ध व्यक्ति के मन में भ्रान्ति थी कि यदि उसकी जवान लड़कियां बहार गयीं तो उनका रेप हो जायेगा | अभी नॉएडा में जिन बहनों ने अपने को इस दुनिया से पूरी तरह अलग थलग कर लिया था उनकी यह स्थिति अपने पिता , जोकि सेना में बड़े पद पर थे की म्रत्यु के बाद हुई | इन्होने इस दुःख के सदमे को सह नहीं पाया और खुद के पड़े लिखे व् अपने पैरो खड़े होने के वावजूद , तनाव ने दिमागी स्थति गड़ बड़ा दी | क्या यह मानव व्यवहार की सामान्य परक्रिया | निश्चित ही ऐसा नहीं है | इन दोनों बहनों के विचार अपने अन्दर इस बुरी तरह उलझ चुके थे कि सारे निष्कर्स जीवन को शुन्यता की और लेजाते महसूस होते थे | इस गहन विचार की प्रष्ठभूमि में अजीब से विश्वास जैसे लोग कला जादू करा रहे हैं भी उनके दिल में बस गया था | दो करीबी लोगों का भावनात्मक संयोजन जो एक साथ रह रहे हों व् एक तरह की विपरीत परिस्थति जीवन में झेल रहे हों ,उनमें एक जैसे भ्रामक विचार भर सकता है | भ्रम के कारण एक व्यक्ति को बन रहे गलत विश्वास को जब घर दूसरा व्यक्ति निराकरण करने की बजाये, उसमे शामिल होने लगता है तो युग्म में मानसिक स्वस्थ्य की समस्या बनाने लगती है | इन दोनों बहनों के भाई ने बहनों की गंभीर प्रकार की मानसिक समस्या को कुछ अलग नज़रिए से देखा और उसने सहायता करने की द्रष्टि से पैत्रिक माकन और पिता की छोड़ी सम्पति, दोनों बहनों को इस उद्देश्य से देदी कि कुछ मानसिक दवाव कम होगा | भाई इस समय आगे बढकर इलाज करना चैये था | जसमे जबरदस्ती करके इलाज करना शामिल है| वह इस से अनजान रहा या बचता रहा | जीवन के बदलते मूल्यों के कारण हर आदमी अपनी जिंदगी (जिसमे अपनी बच्चे पत्नी कि गुंजाईश है) को एक मुकाम तक पहुचना चाहता है बाकी सब पीछे रह जाता है | मानसिक रोग की अनदेखी का यह साक्षात् उदाहरण है | ऊपर के दोनों उदाहरण मुंबई व् दिल्ली के पास नॉएडा से है | ऐसी अनदेखी के हालत भारतीय गावों में अब भी नहीं है | यहाँ सवाल उठाना लाजमी है कि इस तरह अपने बंद करके जीवन अंत करने का अधिकार इन बहनों या किसी और को है ? जबाब निश्चित ही नहीं में आएगा | फिर कौन जिम्मेवार है? क्या इन सब किस्मत पर छोड़ दिया जाये | क्या रिश्तेदार आर्थिक मदद देकर शांति ग्रहण कर लें और कह दें वे मानसिक चिकित्सा करने को तैयार ही नहीं थी तो कुछ नहीं करा जा सका | यदि ऐसे लोगों के घरवाले या तो है नहीं या सामर्थ्य वां नहीं है तो क्या ऐसे मरीजों को अपने हाल पर छोड़ा जा सकता है? |
यहाँ सामाजिक संगठन को कितनी देर से खबर लगी और प्रक्रिया कतई सरल या मानवीय नहीं थी | इसमें पुलिस को मदद के लिए मेजेस्ट्रेट के आदेश कि जरुरत आ पड़ी | हाल के समय देश के कानून रोगी को मानसिक चिकित्सा प्रदान करने में बाधक है | खास तौर से ऐसे मरीज जो अपनी मानसिक भ्रम कि बीमारी के कारण अपने बीमार नहीं मानते व दवा ग्रहण नहीं करते | मानसिक रोगीओं को भर्ती करने पर कई प्रकार कि अडचने है व उसका इलाज दिल गुर्दा के इलाज कि तरह हर नर्सिंग होम व चिकित्सालय में नहीं हो सकता | प्रथक लाइसेंस व् भर्ती कि प्रक्रिया को सरकार ने उलझा कर रख दिया है | देश में न तो पर्याप्त विशेषज्ञ है न पर्याप्त शिक्षा मेडिकल कालेज में एम बी बी एस में दी जाती है | मानसिक रोग जिसका महत्व समय के साथ बढता जा रहा है पर उसका अलग से पेपर तक एम बी बी एस में नहीं होता |
मानसिक रोग होने पर भी अपने इलाज कि सहमति न दे पाने के कारण आज अधिकांश मनो रोगी बिना इलाज के रहने और कभी भी ऐसे हादसों के लिए तैयार है | अतः सहमति न दे पाने वाले मरीजों के इलाज में बाधा बने डाक्टरों पर आयात सारे पर्तिबंध समाप्त होने चाहिए | डाक्टर यह नहीं समझ में आता कि क्यों गलत मंशा से मरीज का इलाज करेगा जबकि मरीज अपना भला अपनी मानसिक स्थति के कारण
जन पाने में असमर्थ है | यदि किसी असाधारण स्थति में डाक्टर कि नीयत पर शक है तो वह कानून कि अन्य धाराओं से निबटा जा सकता है | बहुत सी मानसिक स्थति ऐसी है कि उससे ग्रसित व्यक्ति अपने लिए बिना खाना खाए वर्षों लोगों से अलग रहने कि स्थति पहुच जाये व अपने को सही कहे तो उसकी जान की रक्षा के लिए सहमती लेने की अड़चन को कानून से मुक्त करना चाहिए | मानव अधिकार में मरीज कि मर्जी के बिना कोई उपचार न करने कि अभिधारणा उसे मानसिक स्वस्थ्य के मूल हक से उसे विमुख करने वाली साबित हो रही है |
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