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मैं आज से कुछ दशक पूर्व जन्मा तो ख़ुशी ताम्बा जर्मन सिल्वर कुछ मिश्रित धातु के पात्र जिसे बेला ( ओंठ उठी प्लेट) कहते है , बजाकर प्रकट की गयी |
न जाने कितने जन्म दिवस बिना ये जाने निकल गये की मेरा जन्म ही सबको प्यार करने के लिए यानि चौदह फरवरी के दिन हुआ | अब प्यार की व्याख्या पर न सही तो जन्म दिन की बधाई ही शायद , आप लोग देदें |
प्यार के बारे में सोचता हूँ तो निश्चित ही बड़े असमंजस में पड़ जाता हूँ | कोई कहता है कि प्यार रूहानी होता है जिस्मानी नहीं | कोई कहता है प्यार अध्यात्मिक होता है जो मीरा बाई ने अपने मुरारी से किया | पर दरअसल ये होता क्या है कि जिसे होता है उसे सूझता ही कुछ नहीं | कब हुआ ये भी पता चलता ही नहीं | किसी के छू भर लेने से क्यों झन झना जाता है , यह तन मन | क्या होता है जब किसी को देख कर अजीब सा हो जाये सारा शरीर अजीब सी सिहरन महसूस करे |
इसे रूहानी कहेंगे या जिस्मानी ? कुछ लोग जिस्मानी का अर्थ दो जिस्मों के पास आने और उसके बाद शारीरिक नजदीकी होने को जिस्मानी कह सकते है | हो सकता है कि एक हद तक विपरीत लिंग के मनुष्य गले लगाना लगना चूमना कहीं शिष्टाचार हो | लैंगिक सम्बन्ध होने कि वर्जना ज्यादातर है यदि वे विवाह या अन्य नाम से रजिस्टर न हों | प्यार के पनपने में पलने में शरीर व मन दोनों बहुत ही बारीक़ अवलंबन से एक दुसरे को संभाले रहते है | प्यार मन में पले पर शरीर उद्विग्न न हो ऐसा हो नहीं सकता | शरीर की कसमसाहट शायद प्यार कि पहली सूचना है | कशम कश शरीर को पहले आने लगती और खबर नहीं होती | प्यार को नैसर्गिक रूप में देख पाना सामाजिक व्यवस्था में संभव ही नहीं| किसी को देखकर सोचकर अपने अन्दर होने वाली हलचल एक जिस्मानी असर है | नीचे कवि की अभिव्यक्ति पूर्णतया जिस्मानी ख्वाइशों से ओत प्रोत होने पर भी क्या प्रेम पूर्ण नहीं है | हमेशा शारीरिक आवश्यकताएं जरुरी नहीं बेईमान ही हों बल्कि यह परस्पर आकर्षण ही वह डोर है जो प्रेमी प्रेमिका को आपस बांधे रख सकता है | यह वही प्राकृतिक शारीरिक रसायनिक जादू और तिलिस्म का मिला जुला असर आदि आदमी औरत के बीच है जो इस प्यार को अन्य मानव प्रेमों से अलग करता है |
जब अंग देखता हूँ तेरा ये नजर वहीं रुक सी जाती
हो परी कोई या नदी कोई चलती है पल-पल इतराती
सर से नख तक की सुन्दरता..
जी मेरा आज नहीं भरता..
एक तो योवन का अल्लड़पन ऊपर से चलती बलखाती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
श्वेत राशि जल नदी उदर
नाभी या कोई पड़ी भँवर
कटि के तट पर टकराये लहर
कहाँ ? सब्र-बाँध फिर रहे ठहर
क्या नहीं डूबने को काफी, जो केश घटायें लहराती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
गोरी बाँहों की नजुकता
छूने की मन में उत्सुकता
ले कदम मेरा उस ओर बढ़ा
क्यूँ रोके आज नहीं रुकता
चंचल सी चितवन वाली वो कुछ इठलाती सी शरमाती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
होठों की लाली क्या बोलूँ
काजल को किससे मैं तोलूँ
अंगार और बादल फीके
इतने प्यारे इतने नीके
दाँतों पे दामिनि बलि जाये, धीरे से जब वो मुस्काती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
घनकेश घटा पिंडली छूती
क्या शब्द लिखेंगे अनुभूति
घुंघरू की मनमोहक रुन-झुन
कोई नागिन नृत्य करे धुन सुन
उड़ते आँचल को थाम थाम, पैरों को लय पर थिरकाती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
चितवन कमान अर्ध-वलयाकार
नयनों समाये सागर हजार
प्यासे मन से आये पुकार
डूबूँ इसमें बस बार बार
तट के ताड़ों के दल झुकते, पलकों को जब-जब झपकाती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
होठों का परस्पर आलिंगन
या पंखुडियों का सहज मिलन
या इन्द्रधनुष कोई आकर
खुद लिपट गया हो शरमाकर
मैं मंत्रमुग्ध बँध सा जाता, धीमे से स्वर में जब गाती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
नथुनों पर अधरों की लाली
या सुबह अभी होने वाली
कोमल कपोलों के भँवर
फूलों पर बैठे या मधुकर
लगता जैसे ऋतुराज आ गया, सुध-बुध मेरी खो जाती
हो परी कोई या नदी कोई ………….
जब अंग देखता हूँ तेरा ये नजर वहीं रुक सी जाती
हो परी कोई या नदी कोई चलती है पल-पल इतराती
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