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ब्लॉग पर लिखने के लिए हरबार की तरह सोचा क्यों न तस्वीर इन्टरनेट से डाउन लोड कर ली जाये | गूगल पर चंपा बहन डालकर देखा तो लन्दन से अमरीका के कुछ आते पते सामने आने लगे | फिर सत्य शोधन व पथरिया डाला पर कुछ खास हाथ न लगा |
पर चंपा बहन के बारे में मैं ब्लॉग पर क्यों आना चाहता हूँ | क्या बहुत सारे हिट मेरी पोस्ट पर आयेंगे? | शायद नहीं , जिंदगी और जमीं से जुडी समस्याओं पर ध्यान देकर शायद कोई अपना समय बर्बाद क्यों करे | समाज में कुरीतिओं के बने रहने का बड़ा कारण भी यही है कि यदि कोई व्यक्ति अपना जीवन भी इन कुरीतिओं सुधारने को दे दे तो भी उसे जानने व दिल से मानने जज्बा कौम में नहीं है | मैंने ब्लॉग पर जब कभी कोई जज्बाती सा गीत नुमा कुछ लिख दिया तो कई कई हिट पोस्ट को मिले जब भी कोई मानवता के असली चेहरे को रूबरू कराने को लिखा तो लोग चुप रहे, कमेन्ट कम रहे |
फिर भी मैं यह कम जारी रखना मैं चाहूँगा |
चंपा बहन न तो मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके कि रहने वाली थी न कोई अन्य सरोकार यहाँ से था | भोपाल जोकि म ० प्र० की राजधानी है में अपने सामाजिक कार्यों के उद्देश्य से वे आयीं हुई थी | यहाँ बेडिया जाति की औरतों के बारे में उन्हें पता लगा |
आमतौर पर बेडिया समाज की महिलाये बुंदलखंड के परम्परिक लोक नृत्य राइ करती है | राजे रजवाड़ों के समय से यह प्रथा चली आ रही थी | पैरों में घुंघरू बांध लेने के बाद न तो इनकी शादी होती न ही घर बसता | इनको देह व्यापार में धकेल दिया जाता | सारा जीवन एक दर्द की दास्ताँ बन जाता | मौत के साथ ही शायद दर्द से मुक्ति मिलती |
चंपा बहन ने इन लोगों के बीच रहकर इनकी सोयी आत्मा व चेतना को जगाया | एक के बाद एक कई पैरों की जंजीर बन चुके घुंघरुओं को पैरों से उतरवा दिया | समुदाय में शादिया होने लगी परिवार बसने लगे | परिवर्तन शुरू हुआ तो घुंघरुओं की क्लेश फैलाती क्रंदन भरी आवाज की जगह जीवन का सुरीला संगीत जीवन में आगया | इस सुरीलेपन का समागम स्थल बना पथरिया का सत्य शोधन आश्रम | कभी सरकार की मदद के लिए हाथ इस आश्रम ने नहीं फैलाये | मंत्रिओं संत्रिओं को कभी उद्घाटन के लिए नहीं बुलाया | राजकीय समारोह हो या रसूखदारों की शादयों की पार्टी या फिर और जश्न मे यदि राइ न्रत्य होता तो इस जीर्ण शीर्ण शारीर की बुलंद आत्मा का विरोधी स्वर राजधानी तक नेताओं की नाक में नकेल डाले रहा |
चंपा बहन जो आज से दो तीन दशक पूर्व भोपाल में एक रचनात्मक कार्यक्रम में एक महिला के यह सब बता भर देने से बापिस हिमाचल न जा सकी गयी तो सिर्फ उनकी अस्थिया | जी हाँ आज वो हमारे बीच नहीं है | पिछले सप्ताह ही उनका इस लोक गमन हो गया |
उनको क्या सम्मान व पुरस्कार मिले उनका जिक्र करना सूरज को दिया दिखाना है |
मेरे मन की पीड़ा तब बहुत बड़ जाति है जब विशुद्ध पैसे के लिए खेल रहे व व्यवसायिक विज्ञापन से आय अर्जित करने वालों का नाम भारत रत्न के लिए प्रचारित किया जाता है | शायद जान समर्थन भी पीछे हो पर हमारे असली भारत रत्न विदा हो जाते अपने अच्छे कार्यों के साथ |
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