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बजाय उसकी आत्मा लहूलुहान कर रही है | दूसरे के लिए सी बी आई केस बंद करने कोर्ट में है, कहती है दोषी तो पता है सबूत पास नहीं है | ये कैसी न्याय व्यवस्था है कैसा तंत्र है | कानून व्यवस्था व तंत्र रसूखदार लोगों की दासी बन बैठा है और पुलिस खरीदी जा सकती है | आज हर उस दिल मेंआक्रोश पल रहा जहाँ आत्मा कहीं बाकी बची है | बोद्धिक वर्ग छिप रहा है ,कहीं अध्यात्म तो कहीं धर्म की आढ़ में | पूरे परिद्रश्य में उत्सव का राठोड या तलवार के चेहरे को बिगाड़ने की कोशिश को कोई मानसिक असुंतलन कोई ,आतंकवादी राष्ट्रद्रोह की कार्यवाही बता रहा है | रासुका जैसे कानून को आतंकियो को नहीं इस आक्रोशित मन पर लगाने की इसी सोच के दर्शन भी टी वी पर हुए | जल्दबाजी में एक चेनल बोल पड़ा प्राण घातक हमला इस केस का दूध का दूध पानी का पानी कर देगा | कई एंकर बोल रहे थे कि इसके पीछे छिपे राज़ जल्दी ही उत्सव शर्मा बताएगा |
इस बेढंगे बेहया तंत्र खिलाफ सुलगते दिल किस राज के मोहताज़ है शायद मीडिया वाले जानते होंगे |…………
रूककर दो लाईने
कई रोज़ से भूखे परिवार का मुखिया अगर किसी जमाखोर के घर से रोटी चुराते पकड़ लिया जाता है तो कानून रोटी चुराने की सजा बराबर भूखे को देगा , जबकि सजा जमाखोर को होनी चाहिए |
हिज्र में इंसाफ होगा बस यही सुनते रहो
कुछ यहाँ भी होरहा है कुछ वहां हो जायेगा
क्या जो हुआ, उसे जो देखा ,उतना ही मानकर फैसला लिया जा सकता है | अपराधी की मंशा निहायत स्वार्थ भरी अपने लिए होती है | यहाँ जो तथ्य है वह किसी ऐसे हालत से जुड़े है जहाँ कानून का मखोल बनाने वाले जब मुस्कराते कोर्ट से निकलते तो जरुर उत्सव तड़प जाता होगा | इन बेशर्म चेहरों देखकर हर कोई कोसता है तंत्र को |
जो कुछ हुआ वह उसके पीछे कि हकीक़त रोज़ रोज़ हर घर महीनो मीडिया द्वारा पहुंचाए गए वे विडिओ है जो अपराधीओं को मुस्कराते कचहरी बहर आते दिखाते है| इससे कुछ न कुछ आक्रोश व्यवस्था के खिलाफ हरेक ने अपने अन्दर महसूस किया है | ऐसे वातावरण में कई उत्सव कही अपनी जान(जो ज्यादातर युवा आत्महत्याओं का कारण है ) या दूसरे कि जान लेने तैयार है |
उत्सव जैसे युवाओं को हमेशा के लिए मानसिक अस्पताल या कारागार में डालने से क्या होगा | कोई और ऐसा करेगा जिनकी संख्या गिनने से कोई फायेदा नहीं है |
आक्रोश जो युवा मन में ज्यादा होता है जो कभी उसे नक्सलवादी आतंकवादी बनता रहेगा | जरुरत न्यायिक व्यवस्था में लोगों के खोते विश्वास फिर से कायम करने की है | ऊपर से मरहम पट्टी से नासूर बन चुके घाव केवल आँखों से छिपाए जा सकते है अगर इन्हें जड़ से मिटाना है तो पूरी सर्जरी करनी होगी | कानून को हाथ में लेने का समर्थन करने का उद्देश्य मेरा नहीं है पर कानून से खेलने की इजाजत कुछ लोगों को यूँ ही दी जाती रही तो ये घटनाये होती रहेंगी |
अंत में गण तंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एडिशनल कलेक्टर यशवंत सोनवाने को उनकी ईमानदारी का इनाम किसी नागरिक अलंकरण के द्वारा नहीं उनको तेल माफिया द्वारा जिन्दा उसी तेल जलाकर मौत के रूप में दिया जिसकी मिलावट को रोकने का प्रयास उन्होंने किया | कैसा गण तंत्र है……….. कैसे बधाई दूँ ………
कुछ जो कभी लिखा था आज उपयुक्त लगा
दिल को मुगालते में रखो
मन को भुलावे में रखो
मुद्दों को उलझा के रखो
सवालों को अलमारी में रखो
कि तुम्हे जीना भी है
हकीक़त को देखो नहीं
देखो तो कुछ सोचो नहीं
ग़मों को खुशिओं का आगाज़ समझो
यहाँ न मिले जगह तो पूरा अस्मा अपना समझो
कि तुम्हे जीना भी है
भूखे हो तो रोटी नहीं चाँद देखो
नंगे हो तो चांदनी ओढ़ के देखो
कंगाल हो तो क्या भारत कि बढती ताकत देखो
मुफलिसी में महान देश के रहवासी होने का रुतबा देखो
कि तुम्हे जीना भी है
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