Menu
blogid : 441 postid : 263

जिंदगी को कहकशा मैंने समझा

Reality and Mirage of Life
Reality and Mirage of Life
  • 62 Posts
  • 540 Comments

जिंदगी को कहकशा, आज तक मैंने समझा
मिली जो शाम को तो रो रही थी अभी
जिंदगी से तनहयों में बात जो करने लगा
बेजान से लगने लगे आज हैं रिश्ते सभी
जिंदगी से मंजिलों के पते में पूछा किया
कहने लगी कि, पूंछने वाले भी पहुंचे है कभी
लाश से जो पूंछा तैरती हो फिर, क्यूँ डूबकर
वह हंसी ,बोली डूबी तब , जब जिदगी भीतर रही
जिदगी को उम्र भर सोचता था, मैं खेता रहा
छूटी पतवार तो लगा पता, नाव कागज की युहीं तैरती रही
साँझ होते ही सजा दिया था दस्तरखा
क्या पता था जिंदगी की साँझ मैं कोई आता नहीं

nature013

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh