- 62 Posts
- 540 Comments
जागरण जंक्सन के एक सम्मानित सदस्य के अनुरोध पर में स्किजोफ्रेनिया के बारे कुछ विवरण देना चाहूँगा
स्किजोफ्रेनिया में मानसिक विखंडन का तात्पर्य मानसिक विभ्रम से है| जिसके विशिष्ठ लक्षण इसकी उपस्थति को बताते है |
इस स्थति में जो दिक्कते आती है, वह अक्सर उस व्यक्ति को कुछ भ्रामक,अवास्तविक आवाजें या ध्वनि सुनाने से आती है | उस व्यक्ति को, इन भ्रामक आवाजो के कारण, अपने वास्तविक वातावरण से सम्बन्ध स्थापित करने में मुश्किल होती है | उसे विश्वास होता है जैसे वो असली आवाजे सुन रहा है| ये आवाजे अनजानी व उसे डराने धमकाने वाली हो सकती है | उसे पूरी तरह जब इन आवाजों के आने का स्रोत पता नहीं चलता तो वह उन्हें ढूंढ़ता हुआ परेशान रहता है | यदि रिश्तेदार दोस्त उससे बात करते है तो भी वह अपने भ्रामक संसार मैं होने कारण पूरी तरह से प्र्रत्युतर नहीं दे पता | इसी विभ्रम की स्थति में कई छद्म भय पलने लगते है लगता है की कोई पीछा कर रहा कोई जान से मार डालेगा| कही से जान पर खतरा है | ऐसे मैं अपने आप को घर की चारदीवारी मैं कैद कर लेना घर वालों को भी घर से बहार न निकलने देना उसे अलग तरह का प्राणी बना देता है | तरह तरह की आवाजों व भय ग्रस्त मनोभावों के कारण जब व्यक्ति असंगत व्यव्हार करने लगता है तो ज्यादातर लोग इसे पागलपन की स्थति मानते है व उस व्यक्ति के आचरण के लिए उसके चरित्र को दोषी ठहराते है | जबकि दिमागी विकृति, उसकी अपनी किसी भूल का परिणाम या पाप का अंजाम यह किसीभी, सूरत में नहीं है | वास्तव में यहाँ मस्तिष्क के न्यूरो ट्रांसमीटर जोकि दिमाग को चलाने वाले रासायनिक पदार्थ के अनुपातिक बिगाड़ के कारण दिमाग को भ्रामक संकेत मिलने लगते हैं | इन्ही प्रकार की अवस्थाओं को सही तरह न समझने के कारण परेशान व्यक्ति को कभी भूत से पीड़ित कभी आत्माओं से पीड़ित मानकर पूजा पाठ से लेकर लोहों की सलाखों से दागने का काम किया जाता है |
आज स्किजोफ्रेनिया का दवाओं के माध्यम से सफल इलाज मौजूद पर अधिकांश मरीज अब भी इलाज करने सामने नहीं आते |
पेरिस के पास एक गाँव में रहने वाले विश्व अपनी प्रकार पेंटिंग्स बनाने वाले विन्सेंट वोन गोग का नाम स्किजोफ्रेनिया के सन्दर्भ में लेना आवश्यक है जो उन्नीसवी शताब्दी के अंत मैं इस रोग के भयंकर प्रहार झेलते हुए भी लगभग ८७४ विश्व प्रसिद्ध पेंटिंग्स बना गए | उसकी जिंदगी इस रोग के थपेड़े झेलती रही व उस समय कोई इलाज न होने से वह मेंटल असायलम में बार बार जाकर बहार आते रहे |
इसी क्रम में मेंटल असायलम से आखरी छुट्टी मई १८९० में हुई व वह बहुत उल्लास के साथ पेरिस से ३० किलोमीटर दूर एक बहुत ही खुबसूरत गाँव में अपने भाई के साथ रहने आ गया पर जल्द ही मानसिक विखंडन अपने चरम आ गया और जुलाई १८९० में उसने अपने को दिल के नजदीक गोली मारकार अपनी जीवन लीला अपने भाई की गोद में समाप्त कर ली | यह जानकर ताज्जुब होता है की अपने जीवन के आखिरी दो माह में उसने ७७ कालजयी पेंटिंग व दर्जनों रेखचित्र बनाये | यह पेंटर ताउम्र मुफलिसी में जीता रहा और उसकी कुछेक पेंटिंग बहुत काम दामो पर बिक पाई | बाद में उसके काम की कीमत अरबों खरबों रूपये में आंकी गयी | विन्सेंट वोग का भाई गरीबी के वावजूद जो कुछ अपने भाई के लिए कर सकता था किया और विन्सेंट की मिर्त्यु के कुछ दिन बाद उसका यह भाई भी संसार छोड़ गया | इस छोटे गाँव में दोनों की कब्रे साथ साथ है | पेरिस जाने वाले लोग, बिना इस कब्र और उस छोटे से घर जिसमे विन्सेंट वोग अपने अंतिम समय में रहा , अपनी यात्रा अधूरी मानते है |यहाँ कुछ पेंटिंग इस जीवन यात्रा को समझने में मदद कर सकती है |
Read Comments