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उस जगह के निशां; है कहाँ

Reality and Mirage of Life
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010108
दोस्त मिलते ही नहीं है ,
आजकल उस मोड़ पर
.
.
.

रास्ते सब ठीक है
कुछ भी मैं भुला नहीं
इमारते हैं सब वही
अब आवाज़ कोई आती नहीं
पीठ पर थप्पी नहीं
कोई मिलता कियूं नहीं
आजकल उस मोड़ पर
.
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चाय की वो चुस्कियां
अख़बार की बारीकियां
कह कहे कुछ अनसुने
ख्वाब थे कितने बुने
खो गए जाने कहाँ
मिलते नहीं , अब यहाँ
आजकल उस मोड़ पर
.
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भीड़ काफी हो गयी
आवाज शोर में खो गयी
चेहरे सब बदरंग हो गए
ट्रेफिक में ग़ुम हो गए
उधार की कुछ चाये पड़ी है
शर्त लगाकर जीती जो हैं
इंतजार बाकी है , क्यूँ मिलेंगे
आजकल उस मोड़ पर
.
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कह के गए थे
बात अब कल करेंगे
जो बात कुछ बाकी रही
बरसों तलाशता रहा
उस जगह के निशां
सब ग़ुम हो गए बियाबाँ
इसलिए मिलते नहीं
आजकल उस मोड़ पर

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