Menu
blogid : 441 postid : 209

जॉय ऑफ़ गिविंग

Reality and Mirage of Life
Reality and Mirage of Life
  • 62 Posts
  • 540 Comments

221207
जब मेरा नौ वर्ष का बेटा आकर बोला कि दादी की शक्ल भी याद नहीं रहेगी और आवाज भी भूल जायेंगे. तो मैंने पूछा-” क्यों ” . वह बोला इतने दिन हो गए है, गए हुए और फ़ोन पर भी बात बहुत दिन से नहीं किया . तब मुझे अहसास हुआ कि शायद मैंने मांजी से बात, ज्यादातर तब की, जब वह या तो स्कूल में था या ज्यादा रात होने से सो रहा था. कभी घर पढ़ाने आने वाली लड़की उसे घेरे रहती और हम दोनों धीमी आवाज में बात करते जिससे नील (मेरा बेटा )पढाई के बीच उठकर न आ जाये. पापाजी जिन्हें हम व् मांजी सभी साहब कहते थे अभी करीब दो साल पहले नहीं रहे पर जब वे थे तब तक वे(मांजी ) अपना सारा समय उनके गुस्सा और हम सबके बीच आकर, घर में ,शांति सेना का काम, अकेला करती थी . अब धर्म ध्यान में रहने के वावजूद उन्हें सबसे ज्यादा चिंता रहती कि गुड्डू(मैंने) ने खाना खा लओ कि नहीं . मैं बहार से अगर लौटने मैं देर हो जाऊ तो वे घबराहट मैं, थोडा गुस्सा भी हो जाएँ . मेरी पत्नी को बोले “इन लोगो को चिंताउ न होत परी परी सोत रहें” . ये बात दीगर है मेरे दरवाजे पर दस्तक सुनके वे जल्दी से बिस्तर पर लेट के सोने का बहाना करे .
बात कुछ तीन महीने पहले की है, बारडोली में सर्विस कर रहे छोटे भाई ने बहुत बुलाया तो उन्हें स्टेशन छोड़ने मैं गया तो यह जानते हुए कि वह छोटे भाई के यहाँ ही जा रही हैं स्टेशन से लोटकर मैं रोने लगा जो शायद जिंदगी मैं पहली बार था .आज से पहले मैं रोने जैसे प्रत्यछ आचरण को महज दिखावा मानता था .
अपने माँ बाप के चेहरे पर ख़ुशी का भाव देखना शायद किसी के लिए सबसे अधिक संतुष्टि का पल हो सकता है तथा यह संतुष्टि तब दुगनी हो जाती है जब इसका कारण आप स्वं हों .
यह बात कुछ अटल सत्य में से है कि “पुत्र कि तरक्की सबसे ज्यादा पिता खुश होता है” जो चाहता है कि बेटा उससे आगे जाये. बाकी सारे रिश्तेदार दोस्त आपकी तरक्की मैं तब तक सहनशील है जब तक आप उनसे कम हैं . इसी प्रकार मां अपनी कमजोर संतान कि तरफ रहती है जबकि सारा संसार हमेशा मजबूत व्यक्ति के साथ दिखना चाहता है . आज मैं जब अपनी इंदौर पढ़ने वाली बिटिया को बस से बैठाने जाऊंगा तो लौटकर कुछ घंटे अकेलापन मुझे घेरेगा , और मुझे अभी अपने मां पिता के वे अनगिनत मौके याद आ गए जब वे अकेले रह गए . अभी भी चाहे काम जितना बढ़ रहा हो अपने बुजुर्गों के साथ बैठना उस अलोकिक सुख का अनुभव करा जाता है जो चकाचौंध से भरे बाहरी संसार मैं कहीं नहीं मिलता.
आजका वह वर्ग, जो यह पढ़ रहा है . भगा भगा अधिक से अधिक भौतिकता इक्कठा कर रहा है वो भी ज्यादातर घरों को तोड़ तोड़ कर . विदेशों में बसा भारत का लगभग दसवा हिस्सा कहीं पीछे छोड़ आया है निरंतर निहारती बाप कि बूढी आँखे जो कि उनके सामने बड़ी सी कार मैं रोज आते जाते अपने बेटे को देखन चाहती है .वे चाहते है उनके बेटे का बेटा अपने बाप की कोई बात उनसे पूछे . मां का ख़ाल की सिलवटों मैं खो गया चेहरा बेटे बेटिओं को देखकर खिलने का माद्दा अब भी रखता है . इन आँखों व चेहरे को फिर से वह कुछ मिल सकता जरुरत है बस घर लौटने और अपनी जड़ों मैं बापिस आने की . जोय इन गिविंग .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh