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खुद से बेखुद

Reality and Mirage of Life
Reality and Mirage of Life
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जब ग़म था महसूस
तो कुछ तो यकीं था
खुद के होने पर
अब अपना हाल
उनके चहरे से
जनता हूँ मैं

उनकी मायूसी बता देती है
हाल मेरे ख़राब होने का
हो न जाये उनको आदत
मेरी तरह यूँ जीने की
इसलिए कभी खुद को
संवार लेता हूँ मैं

ये सर्द चहरे मेरे चारो तरफ
मेरी ही बातें करते हैं
कह न डालें कहीं हाल
मेरी बदहाली का
अपने चहरे को बिस्तर में
ढांप लेता हूँ मैं

अब तो ये आने लगे हैं
औरों के लिबास में
पहचानता लेता हूँ
अंदाज़ से इनके आने के
आवाज़ बदल अपनी इनसे
बोलता हूँ मैं

जानने लगे हैं अब ये
राज मेरी गुमनामी के
गुज़ार दूंगा जिंदगी
खानाबदोश की तरह
घर अपना छोड़ कर
जा रहा हूँ मैं

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