Reality and Mirage of Life
- 62 Posts
- 540 Comments
जब ग़म था महसूस
तो कुछ तो यकीं था
खुद के होने पर
अब अपना हाल
उनके चहरे से
जनता हूँ मैं
उनकी मायूसी बता देती है
हाल मेरे ख़राब होने का
हो न जाये उनको आदत
मेरी तरह यूँ जीने की
इसलिए कभी खुद को
संवार लेता हूँ मैं
ये सर्द चहरे मेरे चारो तरफ
मेरी ही बातें करते हैं
कह न डालें कहीं हाल
मेरी बदहाली का
अपने चहरे को बिस्तर में
ढांप लेता हूँ मैं
अब तो ये आने लगे हैं
औरों के लिबास में
पहचानता लेता हूँ
अंदाज़ से इनके आने के
आवाज़ बदल अपनी इनसे
बोलता हूँ मैं
जानने लगे हैं अब ये
राज मेरी गुमनामी के
गुज़ार दूंगा जिंदगी
खानाबदोश की तरह
घर अपना छोड़ कर
जा रहा हूँ मैं
Read Comments