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फेरे बिन लिब इन

Reality and Mirage of Life
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समलैंगिको के विषय मैं माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय तथा उसके बाद शादी किये बिना साथ रहने को सही ठहराने जैसी टिप्पड़ी को सही सन्दर्भ व समग्र रूप देखे जाने की जरुरत है | कानून व समाज और उसमे रहने वाले एक दुसरे से किस हद तक प्रभावित होते है इस पर भी गौर करना चाहिए | भ्रष्टाचार पर कानून की अनगिनत धराये व कठिन से कठिन सजाएँ हैं, कई स्तरों पर जांचे हैं पर यह समाज मैं सबसे प्रचलित शिष्टाचार है जिसके बिना कहीं काम ही नहीं चलता | समलैंगिक इसलिये नहीं बाद जाते कि क़ानूनी अमलीजामा पहना दिया गया है | बिना शादी यदि दो लोग व उनके लिए महत्व रखने वाले , यदि इस रिश्ते से ज्यादा खुशहाल होते जाए तो इसका प्रचलन सामाजिक बदलाव की तरह सामने आएगा न कि अदालत कि वजह से | अदालती फैसले ,बड़े बेमन से कहना पड़ता आम जिंदगी को परिवर्तित करने हमेशा नाकामयाब रहे है | हमारी न्यायिक प्रक्रिया आत्महत्या के अधूरे प्रयास(जिसमे व्यक्ति आत्महत्या के प्रयास के बाद बच जाता है ) से बड़ी खफा रहती है उसे सजा देकर प्रताड़ित करती है ,पीछे का कारण नहीं देखती | कोई क्या पहने, क्या खाए, इसके लिए कोर्ट फैसले कोई अहमियत नहीं रखते | यह फैसला (जो अभी आना है) को अभिनेत्री खुशबू के विवाह पूर्व सेक्स की वकालत पर मचे हो हल्ले व उन पर चल रहे तमाम कोर्ट प्रकरण तक सीमित रखकर ही देखना चाहिए | भारतीय समाज के अपने मूल्य है | शादी के अस्तित्व को चुनोती देती बिना शादी साथ रहने पद्धति को क़ानूनी रूप रोकना न तो संभव है न जरुरी | लिव इन रिलेशन के प्रचालन कोई कानून नहीं बल्कि कई सामाजिक व आर्थिक बदलाव तय करेंगे | स्त्री पुरुष एक दुसरे का पूरक होने का प्राकृतिक तथ्य को यह समाज तोड़ मरोड़ के एक दुसरे से छोटाबड़ा कमज्यादा करके देखती आया है | एक छत के नीचे रहने वाले दो लोग अपने सेक्स जैसे बेहद व्यक्तिगत सम्बन्ध चाहे जिस नाम के रिश्ते के अंतर्गत बनाते रहे पर मेरे राष्ट्र व समाज को नेक नीयत से काम करने वाले सचाई के साथ जीने वाले लोगो की बहुत जरुरत है |

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