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पिछले दो चार सालों के समाचार पत्रों व् अन्य माध्यमो से भारत के विश्व मैं सबसे सम्रध देश हो जाने की भविष्य वाणी मुझे आसानी से गले नहीं उतर रही थी पर चारो ओर दोड़ती कारों नई नई इमारतो के होते निर्माण ने मुझे मानने पर मजबूर कर दिया कुछ न कुछ हो तो रहा है !
फिर मन मैं एक और प्रश्न जन्म लेने लगा की वास्तव मैं हम धनी हो गएँ हैं तो रोज अख़बार क्यों रंगे पड़े है लूट मार से छीना झपटी से ! जबाब भी समझ आने लगा कि जहाँ हमारे करोडपतियो ने अरबों खरबों मैं छलांग लगाई एक मध्यमवर्गीय कर्मचारी व्यापारी ने भ्रीष्टाचार ओर रात दिन लगकर पहले के मुकाबले तमाम भोतिक साधन जुटा लिए ! वहीँ एक बड़ा वर्ग वंचितों का भी पैदा हो गया ओर रोटी रोजी के लिए बस गया शहरों के आस पास | यह विस्थापन, मरने ओर अस्तित्व को बचाने के लिए इतना तीव्र हो चला कि, वंचितों का सैलाब आ गया | यह मनोविज्ञानिक तथ्य है कि पडोसी सम्पन्नता अपनी विपन्नता को ओर बड़ा कर रंजिश पैदा कर देती है | साधन हीन व्यक्ति पहले जायज तरीकों से साधन बनाना चाहता है पर ऐसा न होने पर नाजायज तरीके अपना लेता है | वंचित वर्ग का यह आक्रोश संपन्न वर्ग को संताप देकर शांति पता है | हत्या ,लुट मार,छीना झपटी , सब इसी क्रम आते है |कभी कम साधन मैं जीते मध्य वर्ग की उम्मीद तो यही थी की सम्पन्नता खुशिया ही खुशिया लाएगी | पर जब अपराध दिनों दिन बड़ते है व आप इनकी चपेट मैं आ जाते हैं तो जान पड़ता है कि केवल पैसे रूपये की सम्पन्नता जिंदगी को आराम दायक नहीं बनती बल्कि सुरक्षित वातावरण इसके लिए जरुरी है. | आखिर सुरक्षा कहाँ से आ सकती है उत्तर ऊपर लगभग लिखा ही जा चूका है | सम्पन्नता व विपन्नता की गहरी खाईजोकि जननी है अपराधिकरण की, इसे पाटना होगा | सरकारी तंत्र ऐसे सामाजिक बदलाव लाएगा यह सोचना भी गलत है | यह जिम्मेवारी हम सब व समाज की है कि अपने आस पास साधन हीनो तक कैसे न कैसे मदद पहुचाये | उनके बच्चे स्कूल जाये , इसके लिए समाज मैं संवेदना आये | वे अन्न के आभाव मैं भूखे न सोये | उन्हें हम बीमारी चिकित्सा दिलवाएं | यह सब इस भावना या घमंड से न करें कि आप कोई दानवीर हैं वरन यदि आपको अपनी सुरक्षा चाहिए तो आप उन सब उपायों को करंगे जहाँ अपराध पैदा करने वाले कारखानों कम से कम पदार्थ उत्पादन के लिए मिले | भूखे पेट सर्दी बिना पूरा कपडा पहने बदन सब इन कारखानों के उत्पाद के लिए उपयुक्त इंधन है. आप उनकी मदद करके अपनी ही मदद कर रहे है या यो कहूँ अपने को सुरक्षित करने को उन्हें सामाजिक सुरक्षा दे रहे है |
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